वेदों को एक भिन्न आधार पर निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है:
- संहिता या मंत्र में वैदिक देवी देवताओं की स्तुति के मंत्र हैं |
- ब्राह्मण - इनमें सभी मंत्रों, कर्मकाण्ड और यज्ञों के अर्थ की व्याख्या की गई है ।
- आरण्यक - में कर्मकाण्ड, मंत्रो की व्याख्या, यज्ञों की रूपक कथाएँ और तत् सम्बन्धी दार्शनिक व्याख्याएँ हैं |
- उपनिषद - वेदों का अंतिम और उपसंहारात्मक भाग या वास्तविक वैदिक दर्शन का सार है।
परिचय : उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वांग्मय के अभिन्न भाग हैं। इनमें परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन दिया गया है। उपनिषद ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्त्रोत हैं, चाहे वो वेदान्त हो या सांख्य या जैन धर्म या बौद्ध धर्म । उपनिषदों को स्वयं भी वेदान्त कहा गया है। दुनिया के कई दार्शनिक उपनिषदों को सबसे बेहतरीन ज्ञानकोश मानते हैं। उपनिषद् भारतीय सभ्यता की विश्व को अमूल्य धरोहर है। ये संस्कृत में लिखे गये हैं। उपनिषद वेदों के अत्यन्त दार्शनिक भाग हैं। चूंकि ये वेदों के अंतिम भाग हैं इसीलिए इन्हे वेदों का सार भी कहा जा सकता है। उपनिषदों को वेदान्त भी कहते हैं, जिसका अर्थ है वेदों का अंतिम भाग ।
आत्मज्ञान, योग, ध्यान, दर्शन आदि वेदों में निहित सिद्धांत तथा उन पर किये गये शास्त्रार्थ (सही रूप से समझने या समझाने के लिये प्रश्न एवं तर्क करना) के संग्रह को उपनिषद कहा जाता है।
भारतीय-संस्कृति की प्राचीनतम एवं अनुपम धरोहर के रूप में वेदों का नाम आता है। मनीषियों ने 'वेद' को ईश्वरीय 'बोध' अथवा 'ज्ञान' के रूप में पहचाना है। विद्वानों ने उपनिषदों को वेदों का अन्तिम भाष्य 'वेदान्त' का नाम दिया है। उपनिषद ब्रह्मज्ञान के ग्रन्थ हैं। वेद का वह भाग जिसमें विशुद्ध रीति से आध्यात्मिक चिन्तन को ही प्रधानता दी गयी है और फल सम्बन्धी कर्मों के दृढानुराग को शिथिल करना सुझाया गया है, 'उपनिषद' कहलाता है। मुख्य उपनिषद 12 या 13 हैं। सभी किसी न किसी वेद से जुड़े हुए है ।
उपनिषद शब्द का अर्थ
- उपनिषद् शब्द का साधारण अर्थ है - ‘समीप उपवेशन’ या 'समीप बैठना (ब्रह्म विद्या की प्राप्ति के लिए शिष्य का गुरु के पास बैठना)। यह शब्द ‘उप’, ‘नि’ उपसर्ग तथा, ‘सद्’ धातु से निष्पन्न हुआ है। सद् धातु के तीन अर्थ हैं: विवरण-नाश होना; गति-पाना या जानना तथा अवसादन-शिथिल होना इसका अर्थ यह है कि जिस विद्या से परब्रह्म, अर्थात ईश्वर का सामीप्य प्राप्त हो, उसके साथ तादात्म्य स्थापित हो,वह विद्या 'उपनिषद' कहलाती है।
- उपनिषद में 'सद' धातु के तीन अर्थ और भी हैं - विनाश, गति, अर्थात ज्ञान -प्राप्ति और शिथिल करना। इस प्रकार उपनिषद का अर्थ हुआ-'जो ज्ञान पाप का नाश करे, सच्चा ज्ञान प्राप्त कराये, आत्मा के रहस्य को समझाये तथा अज्ञान को शिथिल करे, वह उपनिषद है। उपनिषद् में ऋषि और शिष्य के बीच बहुत सुन्दर और गूढ संवाद है जो पाठक को वेद के मर्म तक पहुंचाता है।
- अष्टाध्यायी में उपनिषद शब्द को परोक्ष या रहस्य के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में युद्ध के गुप्त संकेतों की चर्चा में 'औपनिषद' शब्द का प्रयोग किया गया है। इससे यह भाव प्रकट होता है कि उपनिषद का तात्पर्य रहस्यमय ज्ञान से है।
- अमरकोष उपनिषद के विषय में कहा गया है-उपनिषद शब्द धर्म के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए प्रयुक्त होता है।
- विद्वानों ने 'उपनिषद' शब्द की व्युत्पत्ति 'उप'+'नि'+'सद' के रूप में मानी है। इनका अर्थ यही है कि जो ज्ञान व्यवधान-रहित होकर निकट आये, जो ज्ञान विशिष्ट और सम्पूर्ण हो तथा जो ज्ञान सच्चा हो, वह निश्चित रूप से उपनिषद ज्ञान कहलाता है। मूल भाव यही है कि जिस ज्ञान के द्वारा 'ब्रह्म' से साक्षात्कार किया जा सके, वही 'उपनिषद' है। इसे अध्यात्म-विद्या भी कहा जाता है।
उपनिषदों के स्त्रोत, उनकी संख्या एवं उनका वर्गीकरण
प्रायः उपनिषद वेदों के मन्त्र भाग, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ आदि से सम्बन्धित हैं। कतिपय उत्तर वैदिककाल के ॠषियों द्वारा अस्तित्व में आये हैं, जिनका स्वतन्त्र अस्तित्व है।
‘मुक्तिकोपनिषद’ में,(श्लोक संख्या 30 से 39 तक) 108 उपनिषदों की सूची दी गयी है। इन 108 उपनिषदों में से—
‘ॠग्वेद’ के 10 उपनिषद है।
‘शुक्ल यजुर्वेद‘ के 19 उपनिषद हैं।
‘कृष्ण यजुर्वेद’ के 32 उपनिषद हैं।
‘सामवेद’ के 16 उपनिषद हैं।
‘अथर्ववेद’ के 31 उपनिषद हैं।
‘मुक्तिकोपनिषद’ में चारों वेदों की शाखाओं की संख्या भी दी है और प्रत्येक शाखा का एक-एक उपनिषद होना बताया है। इस प्रकार चारों वेदों की अनेक शाखाएं है और उन शाखाओं की उपनिषदें भी अनेक हैं। विद्वानों ने ॠग्वेद की इक्कीस शाखाएं, यजुर्वेद की एक सौ नौ शाखाएं, सामवेद की एक हज़ार शाखाएं तथा अथर्ववेद की पचास हज़ार शाखाओं का उल्लेख किया हैं। इस दृष्टि से तो सभी वेदों की शाखाओं के अनुसार 1,180 उपनिषदें होनी चाहिए, परन्तु प्रायः 108 उपनिषदों का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें भी कुछ उपनिषद तो अत्यन्त लघु हैं।
इनके अतिरिक्त नारायण, नृसिंह, रामतापनी तथा गोपाल चार उपनिषद् और हैं।
१०८ उपनिषदों में से प्रथम १० को मुख्य उपनिषद कहा जाता है; २१ उपनिषदों को सामान्य वेदांत , २३ उपनिषदों को सन्यास, ९ को शाक्त, १३ को वैष्णव , १४ को शैव तथा १७ उपनिषदों को योग उपनिषद की संज्ञा दी गयी है। Vedas in Hindi
मुख्य उपनिषद :
विषय की गम्भीरता तथा विवेचन की विशदता के कारण १३ उपनिषद् विशेष मान्य तथा प्राचीन माने जाते हैं।
जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने १० पर अपना भाष्य दिया है-
(१) ईश - शुक्ल यजुर्वेद, (२) ऐतरेय - ऋग्वेद (३) कठ - कृष्ण यजुर्वेद (४) केन - सामवेद (५) छांदोग्य - सामवेद (६) प्रश्न - अथर्ववेद (७) तैत्तिरीय - कृष्ण यजुर्वेद (८) बृहदारण्यक - शुक्ल यजुर्वेद (९) मांडूक्य - अथर्ववेद और (१०) मुंडक - अथर्ववेद ।
उन्होने निम्न तीन को प्रमाण कोटि में रखा है-
(१) श्वेताश्वतर (२) कौषीतकि तथा (३) मैत्रायणी।
अन्य उपनिषद् तत्तद् देवता विषयक होने के कारण 'तांत्रिक' माने जाते हैं। ऐसे उपनिषदों में शैव, शाक्त, वैष्णव तथा योग विषयक उपनिषदों की प्रधान गणना है।
भाषा तथा उपनिषदों के विकास क्रम के आधार पर
भाषा तथा उपनिषदों के विकास क्रम की दृष्टि से उनका विभाजन चार स्तर में किया है:
१. गद्यात्मक उपनिषद्
१. ऐतरेय, २. केन, ३. छांदोग्य, ४. तैत्तिरीय, ५. बृहदारण्यक तथा ६. कौषीतकि;
इनका गद्य ब्राह्मणों के गद्य के समान सरल, लघुकाय तथा प्राचीन है।
२.पद्यात्मक उपनिषद्
१.ईश, २.कठ, ३. श्वेताश्वतर तथा नारायण
इनका पद्य वैदिक मंत्रों के अनुरूप सरल, प्राचीन तथा सुबोध है।
३.अवांतर गद्योपनिषद्
१.प्रश्न, २.मैत्री (मैत्रायणी) तथा ३.मांडूक्य
४.आथर्वण (अर्थात् कर्मकाण्डी) उपनिषद्
अन्य अवांतरकालीन उपनिषदों की गणना इस श्रेणी में की जाती है।
आध्यात्मिक चिंतन की अमूल्य निधि
उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूलाधार है, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन स्त्रोत हैं। वे ब्रह्मविद्या हैं। जिज्ञासाओं के ऋषियों द्वारा खोजे हुए उत्तर हैं। वे चिंतनशील ऋषियों की ज्ञानचर्चाओं का सार हैं। वे कवि-हृदय ऋषियों की काव्यमय आध्यात्मिक रचनाएँ हैं, अज्ञात की खोज के प्रयास हैं, वर्णनातीत परमशक्ति को शब्दों में बाँधने की कोशिशें हैं और उस निराकार, निर्विकार, असीम, अपार को अंतर्दृष्टि से समझने और परिभाषित करने की अदम्य आकांक्षा के लेखबद्ध विवरण हैं
उपनिषदों का महत्व
उपनिषदों में ॠषियों ने अपने जीवन-पर्यन्त अनुभवों का निचोड़ डाला है। इसी कारण विश्व साहित्य में उपनिषदों का महत्व सर्वोपरि स्वीकार किया गया है।
जीवन के सभी विचार और चिन्तन बेमानी सिद्ध हो सकते हैं, किन्तु जीव और परमात्मा के मिलन के लिए किया गया अध्यात्मिक चिब्तब कभी बेमानी नहीं हो सकता। वह शाश्वत है, सनातन है और जीवन के महानतम लक्ष्य पर पहुंचाने वाला सारथि है। जिस प्रकार महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन के लिए सारथि का कार्य सम्पन्न किया था, उसी प्रकार जन-जन के लिए उपनिषदों ने यह महान का कार्य सम्पन्न किया है। वह आलोक है, जो समस्त मानवता के अज्ञानपूर्ण अन्धकार को दूर करने के लिए ॠषियों द्वारा अवतरित कराया गया है। इसीलिए उपनिषदों का महत्व, सर्व-कल्याण का श्रेष्ठतम प्रतीक है।
उपनिषद गूढ़ भाषा में है और इनको समझना कठिन है, क्योंकि हमारा मस्तिष्क और मन बाह्या वस्तुओं को ही पहचान पाता है, संवेदन अंगो के द्वरा ग्रहन किया जा सकने वाला अनुभव ही मस्तिस्क में दर्ज़ होता है और वही हम समझ पाते है और इसी वजह से उपनिषदों को समझना भी मुश्किल होता है क्योंकि उपनिषद ईश्वर के बारे में कुछ नही कहते, ना ही शैतान के बारे में ना ही स्वर्ग, ना ही नरक के बारे में |
उपनिषद बात करते है स्वयं की चेतना के बारे में जिसे हम आत्मा भी कहते है जो की समझने में बेहद मुश्किल है, इसलिये उपनिषदों को समझना भी मुश्किल लगता है |