6/17/16

नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र

ग्रहाणामादिरादित्यो लोकरक्षण कारक:।
विषमस्थान संभूतां पीडां हरतु मे रवि:।।
रोहिणीश: सुधामूर्ति: सुधागात्र: सुधशन:।
विषमस्थान संभूतां पीडां हरतु मे विधु:।।
भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत्सदा।
वृष्टिकुदृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुज:।।
उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:।
सूर्यप्रियकरो विद्वान्पीडां हरतु में बुध:।।
देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:।
अनेक शिष्यसंपूर्ण: पीडां हरतु में गुरु:।।
दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदाश्च महामति:।
प्रभुस्ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगु:।।
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
दीर्घचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:।।
महाशिरो महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:।
अतनु: ऊध्र्वकेशश्च पीडां हरतु में शिखी।।
अनेक रूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहश:।
उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम:।।

No comments: